
Motihari News; जिस पत्नी की कथित हत्या के आरोप में एक निर्दोष पति पांच महीने से जेल की सलाखों के पीछे बंद रहा, वही पत्नी प्रेमी के साथ दिल्ली-नोएडा में जिंदा मिली। यह मामला न सिर्फ पुलिस विवेचना पर गंभीर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि बिना वैज्ञानिक जांच के की गई कार्रवाई किसी निर्दोष की जिंदगी को कितनी बड़ी सजा दे सकती है। मामला अरेराज थाना क्षेत्र का है, जहां के रंजीत कुमार को उसकी पत्नी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था।
रंजीत लगातार यह साबित करने की कोशिश करता रहा कि उसकी पत्नी घर छोड़कर भाग गई है, उसने पुलिस को सीसीटीवी फुटेज तक उपलब्ध कराए। इसके बावजूद पुलिस ने तथ्यों पर विचार न कर ‘टेबल इन्वेस्टिगेशन’ के आधार पर हत्या मानकर उसे जेल भेज दिया। रंजीत के पिता और परिवार बार-बार न्याय की गुहार लगाते रहे, लेकिन पुलिस ने एक भी तथ्य वस्तुतः जांचने की कोशिश नहीं की।
जब मामला अदालत पहुंचा और कोर्ट ने पुलिस से हत्या के सबूत मांगे, तो पुलिस कोई ठोस प्रमाण पेश नहीं कर सकी। इसी बीच, सूचना मिलने के बाद पता चला कि महिला नोएडा में अपने प्रेमी के साथ रह रही है। हैरानी की बात यह कि महिला को बरामद कराने के लिए पूरा खर्च भी पीड़ित परिवार को उठाना पड़ा, जिसमें लगभग 20,000 रुपये खर्च हुए।
बरामदगी के बाद रंजीत निर्दोष साबित हुआ। अब पीड़ित परिवार और वकील की मांग है कि पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए और महिला पर भी मानहानि एवं मानसिक प्रताड़ना का मुकदमा दर्ज किया जाए। रंजीत के वकील नरेंद्र देव का कहना है कि यह मामला पूरी तरह विवेचना विफलता का उदाहरण है और बिना वैज्ञानिक सत्यापन किसी को अपराधी मान लेना अपराध है।
एसडीपीओ कुमार रवि ने मामले को गंभीर मानते हुए कहा कि पुनः जांच कराई जाएगी और जिस अधिकारी की लापरवाही साबित होगी, उस पर कार्रवाई होगी। उन्होंने माना कि जिंदा महिला की ‘हत्या’ मानकर गिरफ्तार करना पुलिस विवेचना की गंभीर त्रुटि है।
यह मामला न्याय व्यवस्था और पुलिसिंग पर बड़ा सवाल छोड़ता है—
- क्या बिना वैज्ञानिक जांच किसी को अपराधी ठहराना न्याय है?
- यदि सही जांच होती, तो क्या एक निर्दोष व्यक्ति 5 महीने जेल में नहीं सड़ता?
इस घटना ने स्पष्ट कर दिया कि जांच की एक गलती से किसी की जिंदगी बर्बाद हो सकती है, इसलिए सही विवेचना और वैज्ञानिक जांच न्याय का पहला आधार है, न कि अनुमान।




